तीन दिन में 14 फ्लाइट्स डायवर्ट, कहीं पायलट अनट्रेंड, कहीं कैट-3 ही नहीं

दिल्ली, लखनऊ व जयपुर सहित देशभर में कोहरे के कारण हर दिन फ्लाइट्स लेट या डाइवर्ट हो रही हैं, वहीं देश के करीब 58 फीसदी पायलट घने कोहरे के दौरान विमान लैंड या टेक-ऑफ कराने में दक्ष नहीं हैं। इसके लिए एक विशेष प्रशिक्षण लेना होता है। तकनीकी भाषा मंे इसे कैट-थ्री-बी तकनीक कहा जाता है। कैट-थ्री-बी प्रशिक्षण हासिल करने वाले पायलट महज 50 मीटर की विजिबिलिटी में विमान को लैंड और 125 मीटर की विजिबिलिटी पर टेक-ऑफ करा सकते हैं। देश में ऐसे पायलटों की संख्या लगभग 4400 है, जबकि कुल पायलट लगभग 7500 हैं। जयपुर एयरपोर्ट पर 75 से 100 मीटर की विजिबिलिटी होने के बावजूद करीब 25 से अधिक फ्लाइट्स को अन्य शहरों के लिए डायवर्ट किया गया है। 30 दिसंबर से 1 जनवरी के बीच विजिबिलिटी 100 से 150 मीटर रही।  इन तीन दिन में अलग-अलग शहरों से जयपुर आने वाली 14 फ्लाइट्स को लो विजिबिलिटी के चलते कैट-थ्री बी तकनीक होने के बावजूद डायवर्ट करना पड़ा।


‘आरवीआर’ है मददगार


एयरपोर्ट पर विजिबिलिटी का आकलन रन-वे विजिबिलिटी रेंज (आरवीआर) से किया जाता है। इसके लिए एयर साइट पर ट्रांसमीटर के जरिये सामान्य तौर पर आंखों से अधिक दूरी तक देखा जा सकता है। जैसे सोमवार सुबह करीब 9.30 बजे एयरपोर्ट पर महज दस मीटर तक देखा जा सकता था, लेकिन आरवीआर की मदद से पायलट करीब 75 मीटर तक देख सकते थे।


कंजेशन भी है डायवर्जन का एक बडा कारण


दरअसल डीजीसीए के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कोहरे की सबसे ज्यादा समस्या नॉर्थ के जयपुर, लखनऊ, अमृतसर, दिल्ली सहित करीब आठ एयरपोर्ट पर होती है। इसके कारण फ्लाइट्स का शेड्यूल प्रभावित होता है। कैट-3 बी तकनीक से लैस एयरपोर्ट पर लगातार फ्लाइट्स डायवर्ट होने के का पहला कारण विमानों का कैट-3 बी तकनीक से लैस नहीं होना और पायलटों को कैट-3 बी की ट्रेनिंग नहीं देना है। दूसरा बडा कारण एयरपोर्ट पर एक साथ कई विमानों का मूवमेंट होने से कंजेशन होना भी है। दिल्ली में रोजाना करीब 1250 फ्लाइट का मूवमेंट होता है। यानि हर 45 मिनट में एक फ्लाइट संचालित होती है। ऐसे में विजिबिलिटी कम होने पर विमानों का दबाव बढ़ जाता है, इसलिए उन्हें नजदीकी एयरपोर्ट पर डायवर्ट कर दिया जाता है। कई बाद क्षमता से अधिक फ्लाइट्स का मूवमेंट होना भी फ्लाइट डायवर्जन की एक वजह होती है।